सहर

क्या एहम है जीने में
हर ज़िन्दगी जब साथ मौत लाती है
क्यों ढूँढे अलग अलग रास्ते
जब मंज़िल एक बुलाती है

क्या है ऐसा ख़ीज़ा में
जो बहारों की याद सताती है
क्यों गर्म ख़ुश्क हवाएँ
भूली कोई ख़ुशबू साथ लातीं है

भला क्या मर्ज़ है आख़िर रिश्तों का
के हाज़िर को अनदेखा करते हैं
जो बिछड़ गए कोई गर चले गए
उनके लिए अश्क़ बहाते हैं

हर आग़ाज़ और अंजाम के बीच
एक कहानी आती है
जो लफ़्ज़ों में बयान होती नहीं
फ़क़त देखी दिखाई जाती है

क्या हासिल है ग़म भरने में
ये जान कर के ख़ुशी आती जाती है
क्यों किसी शब के अँधेरे को ज़ाया कहें
गुज़र के जब वो रौशन सहर लाती है