Hindi Poetry | कविताएँ

पढ़ें सुधाम द्वारा लिखी कविताएँ। सुधाम के लेखन में श्रृंगार, करुणा, अधभुत आदि रसों का स्वाद सम्मिलित है।

  • Hindi Poetry | कविताएँ

    माँ (Maa)

    जाने कितनी दफ़ा 
    कंधे पे तेरे सर रख के 
    घंटों सोया हूँ मैं
    
    जाने कितनी दफ़ा
    तेरे आँचल तले
    बिलख़ के रोया हूँ मैं
    
    जाने कितनी दफ़ा
    मेरी छोटी सी छींक ने
    रात भर जगाया होगा
    
    जाने कितनी दफ़ा
    मेरी किसी नादानी ने
    तेरा दिल दुखाया होगा
    
    जाने कितनी दफ़ा
    मेरे भविष्य की
    चिंता तूने की होगी
    
    जाने कितनी दफ़ा
    मेरी एक पुकार पे 
    तुम हर काम छोड़ भागी होगी
    
    जाने कितनी दफ़ा 
    ये सोचता हूँ क्या मैंने तुम्हें
    गर्वान्वित होने का कभी मौक़ा दिया
    
    जाने कितनी दफ़ा 
    ये सोचता हूँ क्या अलग करता
    कैसे मैंने तुम्हें यूँ अचानक खो दिया
    
    जाने कितने दफ़ा
    मैं ख़ुद को और लोग मुझको
    इसे होनी की चाल बताते हैं
    
    जाने कितनी दफ़ा
    यादें और ख़याल
    तेरे होने का एहसास दिलाते हैं 
    
    जाने कितनी दफ़ा
    फिर दो आसूँ बहा
    तुम्हारा स्मरण करता हूँ
    
    जाने कितनी दफ़ा
    शीश झुका के माँ
    तेरे जीवन को नमन करता हूँ
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    न्योता (Nyota)

    महज़ वक़्त के बीतने से 
    किसीकी याद घटती नहीं
    
    बिछोड़े के काटे से
    रिश्तों कि डोर कटती नहीं
    
    दिलों में छपी तस्वीरें
    अंधेरों में ओझल होतीं नहीं
    
    विचलित मन की आँखों में
    नींद आसानी से समाती नहीं
    
    ख़यालों में गूँजती पुकार
    खुली आँख सुनाई देती नहीं
    
    ये जो ऋणों का बंधन है 
    वो चुकाये उतरता नहीं
    
    कोई है उस पार गर जहाँ तो
    बिन बुलावे के कोई जा पाता नहीं
    
    फ़िलहाल कोशिश है खुश रखें और रहें 
    दुःख अपना अपनों पे और लादा जाता नहीं
    
    जीवन है,  हर धुन, हर रंग में रमना है, रमेंगें
    द्वार पे जब तक यम न्योता ले के आता नहीं 
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Humare Ram (हमारे राम)

    Painting Credit & Courtesy: Sukhpal Grewal
    श्री राम कहो, रामचंद्र कहो
    कोई भजे सियाराम है
    कोई कहे पुरुषोत्तम उनको
    मानो तो स्वयं नारायण है 
    
    
    कुछ तो बात होगी ही न उनमें
    की राम भावना युगों से प्रचलित है 
    सहस्रों हैं वर्णन उनके, सैंकड़ो हैं गाथाएँ
    जो राम हैं हमारे वह तो हर कण में रमित हैं
    
    
    आज सज रहा शहर मोहल्ला
    सजी सजी हर गली भी है
    लहरा रही हनुमान पताका
    श्री राम लहर जो चली है
    
    जलेंगे आज दीप घर घर में
    पौष में मन रही दिवाली है
    प्रस्थापित होंगे राम लल्ला अवध में
    हर मन प्रफुल्लित और आभारी है
    
    पुनः निर्मित हो रहा है जो
    केवल मंदिर नहीं स्वाभिमान है
    यह किसी धर्म संप्रदाय की विजय नहीं
    धरोहर हैं हम जिसकी उस सभ्यता का उत्थान है
    
    हो सम्मान जहाँ हर नर का
    सम्मानित जहाँ हर नारी है
    प्रेरित हो जो राम राज्य से
    उस भारत की रचना ज़िम्मेदारी है
    
    राम आस्था राम विश्वास
    राम जीवन की सीख हैं
    राम रामत्व रम्य रमणीय
    राम इस संस्कृति के प्रतीक हैं
    
    कोई कहे पुरुषोत्तम उनको
    मानो तो स्वयं नारायण है 
    श्री राम कहो, रामचंद्र कहो
    कोई भजे सियाराम है
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    जो कह न  सका

    कहने को तो बहुत कुछ है
    लेकिन आज भी कहा नहीं जाता
    
    ऐसा होता तो है मगर होता क्यों है
    के दिल में आया ख़याल अंजाम नहीं पाता
    
    काश के कह दिया होता जो कहना था
    फिर वक़्त पे मैं ये इल्ज़ाम न लगाता
    
    आपकी इज़्ज़त करना जिसे सोचा था
    उस एहतिराम को बीच का फ़ासला न बनाता
    
    अब उम्मीद यही करता हूँ हर बार ये
    के सुन ही लेते थे आप जो मैं ज़ुबान पे न लाता
    
    यक़ीनन पहुँच रहा होगा मेरा दर्द  भी ये
    वरना इतना मुझ से अकेले सँभाला नहीं जाता
    
    बस गयें हैं आप शायद अब कहीं मुझ में ही
    आप से जुदा चेहरा मेरा आईना नहीं बतलाता
    
    हर रोज़ रूबरू होता हूँ मैं यूँ अब आप से
    इसीलिए मैं इस बात का शोध नहीं मनाता
    
    कहने को तो बहुत कुछ है
    लेकिन आज भी कहा नहीं जाता

  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Shunya (शून्य)

    शून्य से जन्मा हूँ मैं
    और शून्य में मिल जाऊँगा
    इस मेल के अंतराल में
    जीवन काल मैं बिताऊँगा
    
    अल्प है किंतु ये
    पूर्ण ये विराम नहीं
    आज के गगन का
    अस्त सूर्य ये हुआ नहीं
    
    मात्र कुछ शब्द कह
    वाणी ये न थम पाएगी
    पंक्तियाँ इस वाक्य की
    महाकाव्य ही रच जायेंगी
    
    स्वयं है लिखि जा रही
    हस्त की ये रेखा नहीं
    सीख ली है हर उस बाण से
    जिसने लक्ष्य भेदा नहीं
    
    कर्म मैं अपना करूँ
    आगे बढ़ता जाऊँगा
    भाग्य की धरती से मैं
    फल नहीं उपजाऊँगा
    
    पाया जो पितृ-तात् से
    दंभ उसका किंचित् भी नहीं
    आशंका मात्र इतनी है
    वृद्धि उसमें कर पाऊँ कि नहीं
    
    नयनों को विश्वास है
    स्वप्न सच हो जाएँगे
    कष्ट करने वालों को
    कृष्ण मिल ही जाएँगे
    
    पथ पे चल पड़ा हूँ जिस
    आपदा का अब भय नहीं
    न मिले या मिलतीं रहें
    उपलब्धियाँ मेरा अस्तित्व नहीं
    
    शून्य हूँ मैं
    और शून्य में मिल जाऊँगा
    अंत की अग्नि में जल
    कल राख़ मैं बन जाऊँगा
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Us Raat Ki Baat (उस रात की बात)

    उस रात की बात कुछ और ही थी
    
    दिलचस्प क़िस्सों और यादों की होड़ सी थी
    नये पुराने रिश्तों बीच लगी एक दौड़ सी थी
    
    चेहरे जो धुंधला गए थे वो साफ़ खिल गए
    कुछ मलाल भी होंगे जो उस रात धुल गए
    
    बीते सालों का असर कहीं छिपा कहीं ज़ाहिर था
    गहराते रिश्तों के मंज़र का हर शक्स नाज़िर था
    
    इतनी हसीन थी मुलाक़ातें के शाम कम पड़ गई
    या यूँ कह दें की अपना काम बहती जाम कर गई
    
    ख़ुशियों का उठता ग़ुबार बारिश भी दबा न सकी
    लगी जो आग है मिलन की वो कब है रुकी
    
    उस रात की बात कुछ और ही थी
    
    उस रात की बात कुछ और ही थी
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Khayal (ख़याल)

    ख़याल कुछ यूँ आया
    कि बहुत दिन हुए कुछ लिख़ा नहीं
    उसी के हाथ थामे ख़याल एक दूसरा आया
    कि बीते दिनों लिखने लायक कुछ दिखा नहीं
    
    अब ख़यालों का कुछ ऐसा है
    कि एक-दो पे कभी सिलसिला रुका नहीं
    फिर लगा कि इस बात पे ही कुछ कह देतें हैं
    कम होता है कि लिखने बैठें और क़ाफ़िया मिला नहीं
    
    दम भर ले शायरी का जितना भी
    बात ग़ाफ़िल ये मुख़्तसर सी है
    कि शायर तेरी भरी तिजोरी भी
    बिना लफ़्ज़ों के समझो ख़ाली ही है
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Kisi Roz (किसी रोज़)

    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    एक बार पीछे मुड के देखा के नहीं
    याद में हमारी दो बूँद रोये के नहीं
    
    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    जब भी गुज़रे होगे तुम गली से हमारी
    एक नज़र तो फ़ेराई होगी दर पे हमारी
    
    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    वो जो यादें बनाई थीं उन यदों का क्या हुआ
    वो जो क़समें लीं थी उन क़समों का क्या हुआ
    
    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    के इतने बरसों में तुमने क्या क्या भुला दिया
    जो थी कशिश दरमियाँ उसे कैसे मिटा दिया
    
    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    क्या समझे थे जिसे वो प्यार था भी या नहीं
    क्या ये दर्द बेवजह है और तुम बेवफ़ा नहीं
    
    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Ekant (एकांत)

    बीती रात खिचे परदों के उस तरफ
    कड़कती बिजली, तेज़ हवाओं का शोर
    और गरजते बादलों का कोलाहल था
    इस तरफ़ था बीतते पलों का एहसास

    कट गई या करवटों में काट दी
    चैन की नींद मानो एक एहसान थी

    आँख जब खुली तो सन्नाटा सा था
    परदों के बीच एक किरण फूट रही थी
    जैसे उस पार के नज़ारे का न्योता दे रही थी
    भोर का चित्त निशा के विपरीत मौन था

    खुले परदों और गुज़री रैन के कालांतर में
    एकांत का वज़न और बदला दृष्टिकोण था
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Dil Chahta Hai (दिल चाहता है)

    इस दौड़ती थकाती ज़िंदगी से
    एक पल चुराना ये दिल चाहता है
    किसी भूले से पसंदीदा एक गीत के
    दो बोल गुनगुनाना ये दिल चाहता है

    बिन मतलब बंध जाते थे जो
    ऐसे मीत ये दिल चाहता है
    बिन मौसम बेइंतहा बरसती रहे जो
    ऐसी प्रीत ये दिल चाहता है

    ख़र्च अपने किसी शौक़ पे कर सकें
    वो फ़ुरसत ये दिल चाहता है
    चल पड़ें किसी रूमानी डगर पर
    ऐसी हिम्मत ये दिल चाहता है

    कथनी करनी में भेद ना हो जिनमें
    वो बोल बोलना ये दिल चाहता है
    मर्यादा जो मनसपूर्ण और सच्ची हो
    वो लेना-देना ये दिल चाहता है

    चाहत में जहाँ निजी स्वार्थ न हो
    वो दुनिया ये दिल चाहता है
    बिन माँगे पूरी करे जो सबकी दुआ
    ऐसा ख़ुदा ये दिल चाहता है