Hindi Poetry | कविताएँ

पढ़ें सुधाम द्वारा लिखी कविताएँ। सुधाम के लेखन में श्रृंगार, करुणा, अधभुत आदि रसों का स्वाद सम्मिलित है।

  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Humsafar(हम)सफर

    मीलों का ये सफ़र है
    तेरे संग जो है तय करना
    एक नहीं कई मंज़िलें हैं
    तेरे साथ जिनको है पाना


    मिलेंगे राहगुज़ार और भी हमें
    कुछ मिलनसार कुछ बदमिज़ाज होंगे
    कोई उकसायेगा कोई भटकायेगा हमें
    जूझेंगे उनसे और हर सितम झेल लेंगे


    मुश्किलें भी कई पेश आयेंगी
    हालात हमारे ख़िलाफ़ होंगे
    कुछ पल को राहें भी जुदा लगेंगी
    मगर एक दूसरे को हम सँभाल लेंगे


    सात कदम, सात जन्म, सात समंदर
    मेरी नज़र में हर दूरी तेरी सोहबत में कम है
    तू जहाँ वहीं चैन वहीं सुकून है दिल के अंदर
    मोहब्बत और दोस्ती पाने नहीं निभाने का नाम है
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    तक़दीर

    एक दिन तक़दीर रुबरू हुई
    पूछने लगी कैसे हैं हाल
    जवाब में खुद ही बोली
    मैं तुम्हारी हूँ यही है कमाल

    फिर बीते कुछ और दिन महीने साल
    ज़िंदगी की किताब में बाब जुड़ते गए
    होने लगा कुछ और यक़ीन उस मुलाक़ात पे
    दौर कुछ और कुछ हसीं कुछ तंग गए

    बस वो दिन था और एक आज है
    हर गुज़रे पल की एहमियत पहचानते हैं
    मिली थी जो उस दिन यकायक हमें
    वो तक़दीर तुम हो बस ये जानते हैं

    तुम ख़ुश रहो ख़ुशहाल रहो
    हर दिन ये दुआ माँगते हैं
    तुम्हारी हर ख़ुशी में है हमारी ख़ुशी
    उस रोज़ से हम यही मानते हैं
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    रिश्ता

    न पूछो क्यों
    बस इतना जान लो

    ये रिश्ता गहरा है

    दूरियाँ भले कितनी हों
    तार जुड़े ही रहेंगे

    ये रिश्ता गहरा है

    वक़्त के पन्ने
    चाहे जितने पलट लो

    ये रिश्ता गहरा है

    ख़याल मिले थे
    दिल मिलते रहेंगे

    ये रिश्ता गहरा है

    एक उम्र निभाई है
    एक उम्र का वादा है

    ये रिश्ता गहरा है

  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Saath (साथ)

    Chaos of Commitment
    Water Colour by Cathy Hegman
    जब मंज़िलें धुंदली हों 
    और जब रास्ते हो अनजाने 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब सासें फूलने लगे 
    और चलना हो नामुमकिन 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब हौंसले हो तंग 
    और जब हिम्मत न बन्धे 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब उम्मीदें जॉए बिखर 
    और निराशा ही हाथ लगे 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब जेबें हो खाली 
    और तेज़ भूक लगे 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब चिलचिलाती हो धुप 
    और कहीं छाँव न दिखे 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब सब दामन चुरा लें 
    और कोई मान न दे 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब सात वचन मैं लूँ  ये 
    और हाँ कह निभाऊँ उम्र भर उन्हें 
    क्या तुम साथ दोगे 
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Tijori (तिजोरी)

    
    
    
    
    लम्हा लम्हा बीत रही है ज़िंदगी
    जीवन की अपनी ही एक ताल है
    वक्त की किसी से नहीं है बंदगी
    हाल-ए-जहाँ से बेवास्ता चाल है
    
    बचपन जवानी की चोटियाँ
    पीछे कहीं दूर छूठ गयीं
    ये अधेड़ उम्र की है वादियाँ
    बहती दरिया है, मोड़ आगे हैं कयीं
    
    कैसे ठहरें बस जायें किसी एक लम्हे में हम
    बिखरे पड़े हैं यादों के ढेरों मोती
    चमक है कुछ में और कुछ में है कम 
    किसी लम्हे में सुबह, किसी में शाम नहीं होती
    
    भर तो ली है हमने यादों से तिजोरी
    वक्त के कहाँ हुए हम धनी हैं
    बाज़ार में माज़ी की क़ीमत है थोड़ी
    क्या मालूम बस सही परख़ की कमी है
    
    टिक टिक करता रहता है गजर
    मसखरी सुई भी ज़िद पे अड़ी है
    एक तू ही नहीं महफ़िल में बेख़बर
    ग़ौर कर ऐसे रईसों की भीड़ लगी है
    Listen to Tijori – Recited by Sudhām
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    चेहरा (ज़िंदगी का)

    कहते हैं चेहरा रूह का आइना होता है
    आइना भी मगर कहाँ सारा सच बतलाता है 
    
    हँसते खिलखिलाते चेहरों के पीछे अक़सर
    झुर्रियों के बीच गहरे ज़ख़्म दबे होते हैं
    
    चाहे अनचाहे मुखौटे पहनना तो हम सीख लेतें हैं
    हक़ीक़त मगर अपनी गली ढूँढ ही लेती है
    
    लाख छुपाने की कोशिशों के बावजूद 
    शिकन आख़िर नज़र आ ही जाती है
    
    हम सब कोई ना कोई बोझ तो उठाए दबाए फिरते हैं
    बस कभी कह के तो कभी सह के सम्भाल लेते हैं
    
    ग़म और ख़ुशी तो सहेलियाँ हैं
    कब एक ने दूजी का हाथ छोड़ा है
    
    इन दोनों के रिश्ते में जलन कहीं तो पलती है
    ज़्यादा देर एक साथ दे किसी का तो दूसरी खलती है
    
    ज़िन्दगी है कैसे और कब तक एक ताल पे नाचेगी
    ग़म लगाम है तो ख़ुशी चाबुक
     फ़ितरतन वो भागेगी
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    दंगल

    वाक़िफ हैं तेरे हथकंडो से ए ज़िंदगी
    फ़िर भी उलझन पैदा कर ही देती हो
    लाख़ जतन सम्भालने के करते हैं मगर
    बख़ूब धोबी पच्छाड़ लगा पटक ही देती हो 
    
    थेथर मगर हम भी कम कहाँ
    दंगल में तेरी उठ के फ़िर कूद जातें हैं
    थके पिटे कितने ही हो भला
    ख़ुद पे एक बार और दाव लगाते हैं
    
    तुम्हारे अखाड़े की लगी मिट्टी नहीं छूटती
    बहुत चाट ली ज़मीन की धूल गिर गिर कर
    ये विजय नहीं स्वाभिमान की ज़िद्द है जो लक्ष्य नहीं चूकती
    अब निकलेंगे अपनी पीठ पे या बाज़ी जीत कर
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    चौथ का चाँद

    एक ऐसी ही चौथ की रात थी 
    जब एक चाँद बादलों में छिप गया
    
    फिर लौट के वो दिन आ गया
    एक चौथ फिर से आ गयी
    
    फिर आँखें यूँ ही नम होंगी
    यादें फिर क़ाबू को तोड़ेंगी
    
    वक़्त थमता नहीं किसी के जाने से 
    फिर भी कुछ लम्हे वहीं ठहर जातें हैं
    
    लाख़ आंसुओं के बह जाने पर भी 
    कुछ मंज़र आँखों का घर बना लेते हैं
    
    यक़ीन बस यही है के एक दिन
    समय संग पीड़ ये भी कम होगी
    
    फ़िलहाल नैन ये भीगे विचरते हैं
    एक झपक में एक बरस यूँ बीत गया
    
    किसी दिवाली दीप फिर जलेंगे
    उन दियों में रोशन फिर ख़ुशियाँ होंगी
    
    छटेंगे बादल चाँद निकलेगा जब
    इंतेज़ार अब उस चौथ का है
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    तू है…के नहीं?

    He and I. Used for Tu Hai Ke Nahin a poem by Sudham
    He and I
    आज एक याद फ़िर ताज़ा हो चली है
    संग वो अपने सौ बातें
    और हज़ार एहसास ले चली है
    
    तोड़ वक़्त के तैखाने की ज़ंजीरें
    खुली आँखों में टंग गयी
    बीते पलों में बसी तस्वीरें
    
    सुनाई साफ़ देती है हर बात
    अफ़सानों का ज़ायका
    और निखर गया है सालों के साथ
    
    दर्द और ख़ुशी का अजब ये मेल है
    संग हो तुम फिर भी नहीं हो
    बस यही क़िस्मत का खेल है
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    फ़िलहाल

    Filhaal -Abstract  used for a poem of the same name by Sudham.
    कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है
     के ज़िंदगी के माइने बदल गए
     इतना बदला हुआ मेरा अक्स है
     लगता है जैसे आइने बदल गए
    
     अभी तो कारवाँ साथ था ज़िंदगी का
     जाने किस मोड़ रास्ते जुदा हो गए
     अब तो साथ है सिर्फ़ अपने साये का 
     जो थे सर पर कभी वो अचानक उठ गए
    
     यूँ लगता जैसे किसी नई दौड़ का हिस्सा हूँ
     किरदार कुछ नए कुछ जाने पहचाने रह गए
     शुरूवात वही पर अंत नहीं  एक नया सा क़िस्सा हूँ
     जोश भी है जुंबिश भी जाने क्यूँ मगर पैर थम गए
    
     एहसास एक भारी बोझ का है सर और काँधे पे भी
     पास दिखाई देते थे जो किनारे कभी वो छिप गए
     प्रबल धारा में अब नाव भी मैं हूँ और नाविक भी
     देखें अब आगे क्या हो अंजाम डूबे या तर गए
    
     इतने बदले हम से उसके अरमान हैं
     लगता है ज़िंदगी के पैमाने बदल गए
     कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है
     के ज़िंदगी के माइने बदल गए