• Hindi Poetry | कविताएँ

    बादल

    गुमनाम बिन पहचान फिरते रहते हैं ये
    कैसे अनदेखे अनसुने से घिर आते हैं ये
    उबाले समंदर के नहीं बनते है ये
    बिन मौसम तो कम ही दिखतें हैं ये
    
    मुरीदों की सौ सौ गुहार सुन
    कभी चंद बूँदें तो कभी बौछार बरसा जातें हैं ये
    ये बादल कभी सफ़ेद नर्म रुई से
    तो कभी काले धुऐं की तरह छा जातें हैं
    जाने कितनी उमीदों का बोझ ले कर चलते हैं ये
    अब के सावन उम्मीद लिए एक बादल मेरा भी होगा
    सूरज की रोशन गर्मी को मध्धम करने का बल मुझ में भी होगा
    
    कभी तेज़ चलने तो कभी रुख पलटने का दौर मेरा भी होगा
    जम के बरसेंगे बादल जो अब तक नहीं थे गरजे
    आसमान पे छाने का मज़ा कुछ और ही होगा
    
    वक़्त के अम्बर  पे एक हमसफ़र मेरा भी होगा
    अब के सावन उम्मीद लिए एक बादल मेरा भी होगा