• Hindi Poetry | कविताएँ

    कश्मीर

    रौनक़ लगाते रौशन गली गलियारे
     सजते थे सूखे चिनार के पत्ते सड़क किनारे
    
     बर्फ़ की सफ़ेद चादर ओढ़े होते सर्द सवेरे
     फ़िरन तले गरमी देते कांगड़ी के नर्म अंगारे
    
     सिराज बाग़ में सजे लाखों फूल वो प्यारे
     दल पे हौले सरकते छोटे बड़े सुंदर शिकारे
    
     हरी हरी वादी के यादगार लुभावने नज़ारे
     सैर सपाटे शांत बहते जहलम किनारे
    
     हुस्न जिसका हर मौसम अलग निखारे
     यूँ ही नहीं कहते थे इसे लोग जन्नत सारे
    
     फिर मौसम बदला गूँजने लगे नारे
     बिखरे अचानक ख़्वाब जो संवारे
    
     मुट्ठी भर की ज़िद ने हज़ारों मारे
     खेल खेलने लगे सियासतदाँ हमारे
    
     पहचान हमारी जो है हमें झमूरियत पुकारे
     ज़रूरी है के जब देश जीते कश्मीरियत ना हारे