यक़ीन-ए-इश्क़

भुला पाओगे नहीं ये यक़ीन है मेरा 
 जाओ फिर भी तुम्हें ये मौक़ा दिया
 कहाँ पाओगे ऐसा जैसा प्यार मेरा
 लो ये भी दुआ दे आज़ाद किया

 नहीं देंगे तुझे आवाज़ फिर 
 न देखेंगे कभी फिर कूचा तेरा 
 भुला देंगे सब कुछ तेरे ख़ातिर
 न याद कराएंगे कोई वादा तेरा

 दूर कहीं जा कर दुनिया से मेरी 
 नया अपना जहाँ बसा लेना 
 भूले से महक न आए मेरी 
 काग़ज़ के फ़ूल सजा लेना 

 गर याद फिर भी आए जो मेरी 
 आँखें अपनी बंद कर लेना 
 दिल तोड़ेंगे तेरा ख़्यालों में तेरी
 तुम बेवफ़ा मुझे फिर कह देना 

 ये इल्ज़ाम भी अपने सर ले लेंगे
 बस तुम अपना सब्र रख लेना 
 इश्क़ किया था माफ़ भी कर देंगे
 बस एक फ़ूल मेरी कब्र पर रख देना