• Hindi Poetry | कविताएँ

    माँ (Maa)

    जाने कितनी दफ़ा 
    कंधे पे तेरे सर रख के 
    घंटों सोया हूँ मैं
    
    जाने कितनी दफ़ा
    तेरे आँचल तले
    बिलख़ के रोया हूँ मैं
    
    जाने कितनी दफ़ा
    मेरी छोटी सी छींक ने
    रात भर जगाया होगा
    
    जाने कितनी दफ़ा
    मेरी किसी नादानी ने
    तेरा दिल दुखाया होगा
    
    जाने कितनी दफ़ा
    मेरे भविष्य की
    चिंता तूने की होगी
    
    जाने कितनी दफ़ा
    मेरी एक पुकार पे 
    तुम हर काम छोड़ भागी होगी
    
    जाने कितनी दफ़ा 
    ये सोचता हूँ क्या मैंने तुम्हें
    गर्वान्वित होने का कभी मौक़ा दिया
    
    जाने कितनी दफ़ा 
    ये सोचता हूँ क्या अलग करता
    कैसे मैंने तुम्हें यूँ अचानक खो दिया
    
    जाने कितने दफ़ा
    मैं ख़ुद को और लोग मुझको
    इसे होनी की चाल बताते हैं
    
    जाने कितनी दफ़ा
    यादें और ख़याल
    तेरे होने का एहसास दिलाते हैं 
    
    जाने कितनी दफ़ा
    फिर दो आसूँ बहा
    तुम्हारा स्मरण करता हूँ
    
    जाने कितनी दफ़ा
    शीश झुका के माँ
    तेरे जीवन को नमन करता हूँ
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    जो कह न  सका

    कहने को तो बहुत कुछ है
    लेकिन आज भी कहा नहीं जाता
    
    ऐसा होता तो है मगर होता क्यों है
    के दिल में आया ख़याल अंजाम नहीं पाता
    
    काश के कह दिया होता जो कहना था
    फिर वक़्त पे मैं ये इल्ज़ाम न लगाता
    
    आपकी इज़्ज़त करना जिसे सोचा था
    उस एहतिराम को बीच का फ़ासला न बनाता
    
    अब उम्मीद यही करता हूँ हर बार ये
    के सुन ही लेते थे आप जो मैं ज़ुबान पे न लाता
    
    यक़ीनन पहुँच रहा होगा मेरा दर्द  भी ये
    वरना इतना मुझ से अकेले सँभाला नहीं जाता
    
    बस गयें हैं आप शायद अब कहीं मुझ में ही
    आप से जुदा चेहरा मेरा आईना नहीं बतलाता
    
    हर रोज़ रूबरू होता हूँ मैं यूँ अब आप से
    इसीलिए मैं इस बात का शोध नहीं मनाता
    
    कहने को तो बहुत कुछ है
    लेकिन आज भी कहा नहीं जाता

  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Kisi Roz (किसी रोज़)

    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    एक बार पीछे मुड के देखा के नहीं
    याद में हमारी दो बूँद रोये के नहीं
    
    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    जब भी गुज़रे होगे तुम गली से हमारी
    एक नज़र तो फ़ेराई होगी दर पे हमारी
    
    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    वो जो यादें बनाई थीं उन यदों का क्या हुआ
    वो जो क़समें लीं थी उन क़समों का क्या हुआ
    
    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    के इतने बरसों में तुमने क्या क्या भुला दिया
    जो थी कशिश दरमियाँ उसे कैसे मिटा दिया
    
    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    क्या समझे थे जिसे वो प्यार था भी या नहीं
    क्या ये दर्द बेवजह है और तुम बेवफ़ा नहीं
    
    कभी किसी रोज़ जब मिलोगे तो पूछेंगे
    
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Humsafar(हम)सफर

    मीलों का ये सफ़र है
    तेरे संग जो है तय करना
    एक नहीं कई मंज़िलें हैं
    तेरे साथ जिनको है पाना


    मिलेंगे राहगुज़ार और भी हमें
    कुछ मिलनसार कुछ बदमिज़ाज होंगे
    कोई उकसायेगा कोई भटकायेगा हमें
    जूझेंगे उनसे और हर सितम झेल लेंगे


    मुश्किलें भी कई पेश आयेंगी
    हालात हमारे ख़िलाफ़ होंगे
    कुछ पल को राहें भी जुदा लगेंगी
    मगर एक दूसरे को हम सँभाल लेंगे


    सात कदम, सात जन्म, सात समंदर
    मेरी नज़र में हर दूरी तेरी सोहबत में कम है
    तू जहाँ वहीं चैन वहीं सुकून है दिल के अंदर
    मोहब्बत और दोस्ती पाने नहीं निभाने का नाम है
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    तक़दीर

    एक दिन तक़दीर रुबरू हुई
    पूछने लगी कैसे हैं हाल
    जवाब में खुद ही बोली
    मैं तुम्हारी हूँ यही है कमाल

    फिर बीते कुछ और दिन महीने साल
    ज़िंदगी की किताब में बाब जुड़ते गए
    होने लगा कुछ और यक़ीन उस मुलाक़ात पे
    दौर कुछ और कुछ हसीं कुछ तंग गए

    बस वो दिन था और एक आज है
    हर गुज़रे पल की एहमियत पहचानते हैं
    मिली थी जो उस दिन यकायक हमें
    वो तक़दीर तुम हो बस ये जानते हैं

    तुम ख़ुश रहो ख़ुशहाल रहो
    हर दिन ये दुआ माँगते हैं
    तुम्हारी हर ख़ुशी में है हमारी ख़ुशी
    उस रोज़ से हम यही मानते हैं
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    Saath (साथ)

    Chaos of Commitment
    Water Colour by Cathy Hegman
    जब मंज़िलें धुंदली हों 
    और जब रास्ते हो अनजाने 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब सासें फूलने लगे 
    और चलना हो नामुमकिन 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब हौंसले हो तंग 
    और जब हिम्मत न बन्धे 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब उम्मीदें जॉए बिखर 
    और निराशा ही हाथ लगे 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब जेबें हो खाली 
    और तेज़ भूक लगे 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब चिलचिलाती हो धुप 
    और कहीं छाँव न दिखे 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब सब दामन चुरा लें 
    और कोई मान न दे 
    क्या तुम साथ दोगे 
    
    जब सात वचन मैं लूँ  ये 
    और हाँ कह निभाऊँ उम्र भर उन्हें 
    क्या तुम साथ दोगे 
  • English Poetry

    I Believe

    Sunlight streams through my window
    But fails to lighten up my dark corners
    The corners of my vacant heart
    
    Life just passed me by
    While I sat making other plans
    A long winding highway with pain at every bend
    A journey spent in waiting for the next milestone
    Just tunnels without any light at the end
    Good things come to those who wait they say
    How much longer? How much further?
    No stopovers, no goodbyes
    No fleeting moments stolen from life
    Lifes just a one way track headed nowhere
    Hope is the fuel I run on
    And I still wait because I believe
    Yes, I believe
  • English Poetry

    Life In a Cliche

    I love to catch the morning sun in my eye
    Always believed there's a cloud with the silver lining somewhere in the sky
    
    I long to catch the winter morning breeze
    When it rains I relish the sight of the washed green leaves
    
    Yes there's a rainbow somewhere with a pot of gold
    For every ending there's a story still untold
    
    I know that good things come to those who wait
    That there will come a day when all the work is finished or when it is not too late
    
    I still feel the bitter truth is better than a lie
    That belief is in saying why not rather than why
    
    Wisdom is not in holding on but letting go
    When the tide is against you its better lying low
    
    In my life I have not loved wisely but loved deep
    Never made promises I could not keep
    
    Always tried to disguise my despair as patience
    Looked forward to the journeys and not the destinations
    
    Chosen life (Well...considering the alternative !)
    Thank you Lord for all the mercies
    
    Whenever I look back at my life
    I would love to have LIVED it just like the cliche!
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    चौथ का चाँद

    एक ऐसी ही चौथ की रात थी 
    जब एक चाँद बादलों में छिप गया
    
    फिर लौट के वो दिन आ गया
    एक चौथ फिर से आ गयी
    
    फिर आँखें यूँ ही नम होंगी
    यादें फिर क़ाबू को तोड़ेंगी
    
    वक़्त थमता नहीं किसी के जाने से 
    फिर भी कुछ लम्हे वहीं ठहर जातें हैं
    
    लाख़ आंसुओं के बह जाने पर भी 
    कुछ मंज़र आँखों का घर बना लेते हैं
    
    यक़ीन बस यही है के एक दिन
    समय संग पीड़ ये भी कम होगी
    
    फ़िलहाल नैन ये भीगे विचरते हैं
    एक झपक में एक बरस यूँ बीत गया
    
    किसी दिवाली दीप फिर जलेंगे
    उन दियों में रोशन फिर ख़ुशियाँ होंगी
    
    छटेंगे बादल चाँद निकलेगा जब
    इंतेज़ार अब उस चौथ का है
    
  • English Poetry

    Mother

    I walk alone
    Trying to find a way back home
    I look for a landmark
    Yet I keep coming back to the start
    I am tired and strained
    The sights and sounds seem unfamiliar
    The shadows grow longer
    I am scared and frightened
    I see a light shining in the distance
    I open my eyes
    Yes, I am home
    A loving touch
    A hand runs its fingers through my hair
    It's you mother
    I am comforted by your tender loving care