• Hindi Poetry | कविताएँ

    फ़िलहाल

    Filhaal -Abstract  used for a poem of the same name by Sudham.
    कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है
     के ज़िंदगी के माइने बदल गए
     इतना बदला हुआ मेरा अक्स है
     लगता है जैसे आइने बदल गए
    
     अभी तो कारवाँ साथ था ज़िंदगी का
     जाने किस मोड़ रास्ते जुदा हो गए
     अब तो साथ है सिर्फ़ अपने साये का 
     जो थे सर पर कभी वो अचानक उठ गए
    
     यूँ लगता जैसे किसी नई दौड़ का हिस्सा हूँ
     किरदार कुछ नए कुछ जाने पहचाने रह गए
     शुरूवात वही पर अंत नहीं  एक नया सा क़िस्सा हूँ
     जोश भी है जुंबिश भी जाने क्यूँ मगर पैर थम गए
    
     एहसास एक भारी बोझ का है सर और काँधे पे भी
     पास दिखाई देते थे जो किनारे कभी वो छिप गए
     प्रबल धारा में अब नाव भी मैं हूँ और नाविक भी
     देखें अब आगे क्या हो अंजाम डूबे या तर गए
    
     इतने बदले हम से उसके अरमान हैं
     लगता है ज़िंदगी के पैमाने बदल गए
     कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है
     के ज़िंदगी के माइने बदल गए
    
  • English Poetry

    Drifting

    Sometimes you are struck
    By a feeling that overwhelms
    A strange discomforting sense
    Of a total lack of control
    You are drifting
    
    The waters are calm
    You sense no turbulence
    Just an inexplicable fear
    Uneasy and unware
    You are still but sinking
    
    You seek happiness
    Peace and joy
    A good life
    You try maintain pace
    The ground beneath is shifting
    
    Get a grip
    You coax yourself
    Draw deep for strength
    Look around for motivation
    Believe there’s a silver lining
    
    Winds change direction
    Things fall into place
    You get dealt a good hand
    Hmmm you wonder if
    The tide is turning
    
    Green shoots around you
    Blue skies on the horizon
    You are in a better place
    It’s a new view
    Life has a new meaning
    
    The low felt really low
    Took away all you had
    You were tough though
    Took a couple on the chin
    The real deal is not loosing
    
    The high it may not remain
    Troubles they may visit again
    But one thing is for sure
    It’s the tussle in between
    That makes life worth living
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    आज… कल…

    मेरा आज जाने क्यों मेरे कल से रूठा है
     पल पल कुढ़ता है उसे सोच के जो बीता है
     नाराज़गी इस क़दर है की कहता है कल झूठा है
     कैसे बतलाऊँ की हर आज बीते कल में भी जीता है
    
     सपने तो बहुत देखें थे आज के लिए मेरे कल ने
     अरमान भी बड़े बड़े सजाए थे मुस्तकबिल के
     कितनी शिद्दत भरी थी कल की हर एक दुआ में
     महनत भी शामिल थी जिसके की कल काबिल थे
    
     पर मेरे आज को तो अपनी हक़ीक़त से मतलब है
     जो सच हुआ, हो पाया, बस वही तो आज और अब है
     हसरतें लेकिन मेरे आज की भी कम नहीं, बहुत हैं
     कुछ ज़्यादा, कुछ बेहतर, कुछ बढ़कर मेरे आज की तलब है
    
     क्यों मेरा आज बीते अपने ही कल को नहीं पहचानता
     क्यों वो अपना समझ के मेरे कल का हाथ नहीं थामता
     आनेवाली सुबह में खुद गुल हो जाएगा क्यों नहीं मानता
     वो भी किसी आज का कल होगा क्या ये नहीं जानता
    
     भला सोचो सब जान के भी यूँ अनजान बना क्यों मेरा आज पड़ा है
     किस लिए आज ज़िद्द पकड़े अपनी बात पे ही ऐसे अड़ा है
     पहला तो नहीं है शायद मेरा ये आज जो अपने कल से लड़ा है
     एक बीत गया, एक आया नहीं, बस यही आज है जो वास्तव में खड़ा है
    
    
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    अक्स

    याद है क्या तुमको वो ज़माना
     College के lecture में न जाना
     बना के कोई भी अजीब सा बहाना
     नज़दीक के cinema पे overtime लगाना
    
     कितनी बेफ़िक्री से जिया करते थे हम
     यारी दोस्ती इश्क़ मोहब्बत का भरते थे दम
     उम्मीदें थी मुस्तकबिल से और माज़ी से गिले कम
     मज़बूती से पड़ा करते थे ज़मीन पे कदम
    
     चलो उसी भूले खोए खुद को ढूँदतें हैं
     एक साँस इस दौड़ती ज़िंदगी को रोक के लेतें हैं
     अपने जवान अक्स को एक मौक़ा और देतें हैं
     आने वाले हर लम्हे से ख़ुशी को घोट के पीतें हैं