चलो… (कुछ करते हैं)

चलो आज रात कहीं बैठ के पीतें हैं
 कुछ पुरानी बातें कुछ रूमानी संग
 भरते हैं बादलों में अपने रंग 
 भूली यादों की लड़ी पिरोते हैं

 याद है जब चौक पे गाड़ी रोक के 
 कभी नयी कभी अध जली सिगरेट जलाते थे 
 फटे स्पीकरों से ऊँची आवाज़ में गीत गाते थे 
 दोस्ती की क़समें खाते थे सीना ठोक के

 एक बार तो छोड़ भी आया था ना बीच राह में 
 बनाया था कुछ अजीब सा ही बहाना
 ख़ूब हुई मिन्नतें चला था रूठना मनाना
 शब गुज़ारते हैं ऐसी ही किसी क़िस्से की बात में

 चलो आज रात कहीं बैठ के पीतें हैं
 कुछ अलग बातें कुछ बदले ढंग
 उड़ाते है क़िस्सों की नयी पतंग 
 किसी की याद में एक ताज़ा याद बनाते हैं