मौक़ा

क्यों परेशान से दिखते हैं लोग हर तरफ़
 आख़िर है क्या इस बेचैनी का सबब
 इतनी दुनिया में दुनिया से नाराज़गी क्यों है भला
 छोटी छोटी बातों पे क्यों ख़ून उबलने है चला
 तेरे मेरे का फ़ासला तो पहले भी कम न था
 मगर इतनी नफ़रत ऐसा रंज-ओ-ग़म न था
 कुछ तो होगा इलाज कोई तो होगी दवा
 मिल के फूकेंगे तो शायद चलेगी बदलेगी हवा
 कहाँ इतिहास में सियासतदारों ने अमन की राह चुनी है
 एहतराम और मोहब्बत के धागों ने इस देश की चादर बुनी है
 निकलेगी आवाम घर से तो कुछ तो हालात बदल पायेंगे
 वरना यूँ बोलते बोलते तो फिर से पाँच साल बीत जायेंगे