दोस्ती का हिसाब

एक रोज़ बस यूँ ही दोस्ती का हिसाब करने बैठे
 मस्ती, समझदारी, वफ़ादारी और बेवक़ूफ़ी के नाम हिस्से बटे
 कुछ दोस्त इधर बटे और कुछ यार उधर बटे
 कुछ तो ऐसे थे जो सोच से ही छटे
 एक रोज़ जब यूँ ही दोस्ती का हिसाब करने बैठे
 सिर्फ़ मस्ती करने वाले दोस्तों की कसर न दिखी
 बेवक़ूफ़ियों और बेवक़ूफ़ों की गिनती भी कम न थी
 जब आढ़े वक़्त ने आज़मा के देखा तो एक-आध वफ़ादार भी मिले
 एक रोज़ जब यूँ ही दोस्ती का हिसाब करने बैठे
 हमने जाना की कुछ दोस्त ऐसे भी थे
 जो किसी भी खेमे में न बट सके
 कुछ नायाब जो दोस्त से ज़्यादा थे, कुछ वो जो दोस्ती के ही क़ाबिल न थे