Hindi Poetry | कविताएँ
पढ़ें सुधाम द्वारा लिखी कविताएँ। सुधाम के लेखन में श्रृंगार, करुणा, अधभुत आदि रसों का स्वाद सम्मिलित है।
एकांत
बीती रात खिचे परदों के उस तरफकड़कती बिजली, तेज़ हवाओं का शोरऔर गरजते बादलों का कोलाहल था इस तरफ़ था बीतते पलों का एहसासकट गई या करवटों में काट दीचैन की नींद मानो एक एहसान थीआँख जब खुली तो सन्नाटा सा था परदों के बीच एक किरण फूट रही थीजैसे उस पार के नज़ारे का न्योता दे रही थीभोर का चित्त निशा के विपरीत मौन थाखुले परदों और गुज़री रैन के कालांतर मेंएकांत का वज़न और बदला दृष्टिकोण था
Dil Chahta Hai (दिल चाहता है)
A poem in Hindi about the desires of the human heart-the emotional mind.
(हम)सफर
मीलों का ये सफ़र है तेरे संग जो है तय करना एक नहीं कई मंज़िलें हैं तेरे साथ जिनको है पाना…
तक़दीर
एक दिन तक़दीर रुबरू हुईपूछने लगी कैसे हैं हालजवाब में खुद ही बोलीमैं तुम्हारी हूँ यही है कमालफिर बीते कुछ और दिन महीने सालज़िंदगी की किताब में बाब जुड़ते गए होने लगा कुछ और यक़ीन उस मुलाक़ात पेदौर कुछ और कुछ हसीं कुछ तंग गएबस वो दिन था और एक आज हैहर गुज़रे पल की एहमियत पहचानते हैंमिली थी जो उस दिन यकायक हमेंवो तक़दीर तुम हो बस ये जानते हैंतुम ख़ुश रहो ख़ुशहाल रहोहर दिन ये दुआ माँगते हैंतुम्हारी हर ख़ुशी में है हमारी ख़ुशीउस रोज़ से हम यही मानते हैं
रिश्ता
न पूछो क्योंबस इतना जान लो ये रिश्ता गहरा हैदूरियाँ भले कितनी होंतार जुड़े ही रहेंगेये रिश्ता गहरा हैवक़्त के पन्ने चाहे जितने पलट लो ये रिश्ता गहरा हैख़याल मिले थेदिल मिलते रहेंगेये रिश्ता गहरा हैएक उम्र निभाई हैएक उम्र का वादा हैये रिश्ता गहरा है
Saath (साथ)
जब मंज़िलें धुंदली हों और जब रास्ते हो अनजाने क्या तुम साथ दोगे जब सासें फूलने लगे और चलना हो नामुमकिन क्या तुम साथ दोगे जब हौंसले हो तंग और जब हिम्मत न बन्धे क्या तुम साथ दोगे जब उम्मीदें जॉए बिखर और निराशा ही हाथ लगे क्या तुम साथ दोगे जब जेबें हो खाली और तेज़ भूक लगे क्या तुम साथ दोगे जब चिलचिलाती हो धुप और कहीं छाँव न दिखे क्या तुम साथ दोगे जब सब दामन चुरा लें और कोई मान न दे क्या तुम साथ दोगे जब सात वचन मैं लूँ ये और हाँ कह निभाऊँ उम्र भर उन्हें क्या तुम साथ दोगे
Tijori (तिजोरी)
लम्हा लम्हा बीत रही है ज़िंदगी जीवन की अपनी ही एक ताल है वक्त की किसी से नहीं है बंदगी हाल-ए-जहाँ से बेवास्ता चाल है बचपन जवानी की चोटियाँ पीछे कहीं दूर छूठ गयीं ये अधेड़ उम्र की है वादियाँ बहती दरिया है, मोड़ आगे हैं कयीं कैसे ठहरें बस जायें किसी एक लम्हे में हम बिखरे पड़े हैं यादों के ढेरों मोती चमक है कुछ में और कुछ में है कम किसी लम्हे में सुबह, किसी में शाम नहीं होती भर तो ली है हमने यादों से तिजोरी वक्त के कहाँ हुए हम धनी हैं बाज़ार में माज़ी की क़ीमत है थोड़ी क्या मालूम बस सही परख़ की कमी…
चेहरा (ज़िंदगी का)
कहते हैं चेहरा रूह का आइना होता है आइना भी मगर कहाँ सारा सच बतलाता है हँसते खिलखिलाते चेहरों के पीछे अक़सर झुर्रियों के बीच गहरे ज़ख़्म दबे होते हैं चाहे अनचाहे मुखौटे पहनना तो हम सीख लेतें हैं हक़ीक़त मगर अपनी गली ढूँढ ही लेती है लाख छुपाने की कोशिशों के बावजूद शिकन आख़िर नज़र आ ही जाती है हम सब कोई ना कोई बोझ तो उठाए दबाए फिरते हैं बस कभी कह के तो कभी सह के सम्भाल लेते हैं ग़म और ख़ुशी तो सहेलियाँ हैं कब एक ने दूजी का हाथ छोड़ा है इन दोनों के रिश्ते में जलन कहीं तो पलती है ज़्यादा देर एक साथ…
दंगल
वाक़िफ हैं तेरे हथकंडो से ए ज़िंदगी फ़िर भी उलझन पैदा कर ही देती हो लाख़ जतन सम्भालने के करते हैं मगर बख़ूब धोबी पच्छाड़ लगा पटक ही देती हो थेथर मगर हम भी कम कहाँ दंगल में तेरी उठ के फ़िर कूद जातें हैं थके पिटे कितने ही हो भला ख़ुद पे एक बार और दाव लगाते हैं तुम्हारे अखाड़े की लगी मिट्टी नहीं छूटती बहुत चाट ली ज़मीन की धूल गिर गिर कर ये विजय नहीं स्वाभिमान की ज़िद्द है जो लक्ष्य नहीं चूकती अब निकलेंगे अपनी पीठ पे या बाज़ी जीत कर
चौथ का चाँद
एक ऐसी ही चौथ की रात थी जब एक चाँद बादलों में छिप गया फिर लौट के वो दिन आ गया एक चौथ फिर से आ गयी फिर आँखें यूँ ही नम होंगी यादें फिर क़ाबू को तोड़ेंगी वक़्त थमता नहीं किसी के जाने से फिर भी कुछ लम्हे वहीं ठहर जातें हैं लाख़ आंसुओं के बह जाने पर भी कुछ मंज़र आँखों का घर बना लेते हैं यक़ीन बस यही है के एक दिन समय संग पीड़ ये भी कम होगी फ़िलहाल नैन ये भीगे विचरते हैं एक झपक में एक बरस यूँ बीत गया किसी दिवाली दीप फिर जलेंगे उन दियों में रोशन फिर ख़ुशियाँ होंगी छटेंगे बादल…