Hindi Poetry | कविताएँ

पढ़ें सुधाम द्वारा लिखी कविताएँ। सुधाम के लेखन में श्रृंगार, करुणा, अधभुत आदि रसों का स्वाद सम्मिलित है।

  • Hindi Poetry | कविताएँ

    उम्मीद (Ummeed)

    उम्मीद भी बड़ी ज़ालिम होती है
    ख़ुद से ही कर बैठो अगर
    वो ज़माने के कहने से नहीं
    आईने की मज़ालिम होती है

    अपने अक्स की तंज़ पे
    झाँका था गिरेबाँ में एक मर्तबा
    मेरे उसूल वहाँ भी तन्हा थे खड़े
    गुमाँ फ़िर भी करता रहा अपनी नेकी पे

    मैं तो बस करता रहा अपने दिल की कही
    मुश्किलें जो पेश आई मैं चलता रहा मुसलसल
    हावी होने न दिया नाकामियों को कभी
    मेरा ज़मीर मेरा रहनुमा है जो सच है वही है सही

  • Hindi Poetry | कविताएँ

    तारे (Taare)

    इस शहर में अब सितारे नहीं नज़र आते 
    बादलों में लुका-छुपी खेलते तारे नहीं टिमटिमाते
    तरक्की बहुत कर ली है अब इस शहर ने
    आसमान ही निगल लिया है इसकी चकाचौंध ने

    ज़िंदगी की भी अब अपनी ही मसरूफ़ियत है
    एक अजीब सी घुटन और बिगड़ी तबीयत है
    मन भर सा गया है इन रोज़ तंग होती गलियों से
    सब निशान ग़ायब हो रहे हैं यहाँ की तस्वीरों से

    एक अरसे से उधेड़-बुन में लगा रहता हूँ
    रोज़ एक नया शहर एक नया जहाँ बसा लेता हूँ
    साँस लेता हूँ खुल के मैं उसकी साफ़ हवा में
    साँझ ढले तारे ही तारे भर जातें हैं आसमान में

    शायद मेरी ही उम्र का एक दौर चला है नया
    ये शहर आगे बढ़ रहा है और मैं वहीं थम गया
    रिश्ते और यादें यहाँ जड़ें कर चुकीं हैं गहरी
    कैसे पाऊँ चैन कहीं और फ़ितरत ही है शहरी
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    कल का सूरज (Kal ka Sooraj)

    एक बात तो खिली धूप सी 
    उजली और साफ़ हो चली है
    मेरी हस्ती बीते कल में ज़्यादा
    और आने वाले में कम मिली है

    मेरे कल और मेरे आज के सूरज में
    मेरा हिस्सा कुछ माँगा कुछ अपने दम का होगा
    जो उगने वाला है कल सूरज वो
    अतीत का नम और भविष्य का तेज़ सूचक होगा

    जो आज विशेषण मेरे लिए उपयुक्त हो रहे हैं
    उनमें से कुछ मेरे पितृ तात के साथ भी जुड़े होंगे
    परिवर्तन का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है
    इस भाग की नायिका और पात्र सब नए होंगे

    हर पल समय अवश्य बदलता रहता है लेकिन
    दिन रैन और ऋतु चिरकाल और निरंतर हैं
    यूँ देखो तो ढलते और उगते सूरज के बीच
    बस एक रात और एक दृष्टिकोण का अंतर है
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    पहलगाम (Pahalgam)

    एक लम्हा ही काफ़ी है 
    जन्नत को दोज़ख़ बनाने के लिए
    इंसानियत को मरना पड़ता है
    इंसान को मारने के लिए

    हद और सरहद दोनों बेमानी हैं
    नफ़रत को घर करने के लिए
    असली कातिल तो ये सियासत है
    बेगुनाह क़ुर्बान किए जाते हैं जिसके लिए

    क्या ज़िंदगी का मिटाना ज़रूरी है
    नुक्ता-ए-नज़र को आगे रखने के लिए
    क्या इतनी हैवानियत लाज़िम है
    किसी भी ख़ुदा की बंदगी के लिए

    अरसों के बाद मुश्किल से गुल खिले हैं
    मरहम से लगने लगे थे ज़ख़्मों के लिए
    जाने कितने और फ़ासले अब भी हैं
    बर-रू-ए-ज़मीं फ़िरदौस के लिए
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    ख़ामोशी (Khamoshi)

    ख़ामोशी के खालीपन में 
    मैंने ख़ुद को खो दिया

    तेरे इश्क़ के पागलपन में
    अपनी हस्ती को ही डुबो दिया

    तेरी यादों की बेइन्तहाई में
    दिन और रैन की सुद को छोड़ दिया

    बिछोड़े की इस तन्हाई में
    मैंने अपनों से रिश्ता तोड़ दिया

    तेरी बेवफ़ाई की इन बातों में
    जाने कैसे ग़म से नाता जोड़ दिया

    सजदे किये थे जिस रब की ख़ुदाई में
    उसी ख़ुदा ने अपना रुख मोड़ दिया
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    झलक (Jhalak)

    देखते देखते पूरा एक साल बीत गया
    श्रृष्टि के नियमानुसार फ़िर काल जीत गया
    जीवन है, लगी तो रहती ही है आनी जानी
    इस ताल को वश में कर पाया नहीं कोई ज्ञानी

    समय और संवेदना हृदय की पीड़ा हर नहीं पाते
    कुछ रिश्ते किसी भी जतन भुलाए नहीं भुलाते
    साये जो हट जातें हैं बड़ों के कभी सिर से
    लाख चाहे किसी के मिल नहीं पाते फ़िर से

    जीवन का चक्का तो निरंतर घूमता ही रहता है
    हर पल हर दिन एक नई कहानी गढ़ देता है
    पात्र बदल जातें हैं कुछ, कुछ बदले आतें हैं नज़र
    मोह का भी क्या है नया बना लेता है अपना घर

    दौड़ती फिरती है ये यादें मगर कुछ बेलगाम सी
    बातों और आदतों में ढूँढ लेती हैं झलक उनकी
    बीते दिनों के किस्सों से अपना मन भर लेता हूँ
    मन हो भारी तो उनको बंद आँखों में भर लेता हूँ
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    चिट्ठी (Chitthi)

    मैं ख़ुश हूँ पापा 
    और मुझे मालूम है
    के इस बात को जान
    आप कई ज़्यादा ख़ुश होते

    बीते चार सालों में
    कुछ पाया और
    बहुत कुछ खोया है
    “जीवन है”, आप यही कहते

    बड़ी वाली की बातों
    छोटी की आदतों
    आपकी बहू के अक्खड़पन में भी
    आप मुझे नज़र आते हो

    हर रोज़ मैं अपने आप को
    आपके जैसे किसी साँचे में
    ढालने की हिम्मत जुटाता हूँ
    कुछ देर के लिए आप बन जाता हूँ

    बातें तो बहुत और भी थीं
    जो बताने सुनाने की सोची थी
    आप पास ही हो कहीं शायद
    क्योंकि इस ख़याल से अब भी सहम जाता हूँ
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    जो तुम होतीं (Jo Tum Hoti)

    अरसे से दिल कुछ भारी सा है 
    एक ख़याल दिमाग़ पे हावी सा है

    माँ आज जो तुम दुनिया में होतीं
    तो पूरे अस्सी साल की हो जातीं

    तुम्हारे ना होने की आदत ही नहीं डल रही
    इतनी यादें हैं तुम्हारी जो धुंधली नहीं पड़ रहीं

    हर सुबह की वो नोंक-झोंक के चाय कौन बनाएगा
    या इस बात पे बहस की क्या कभी देश में
    राम राज्य आयेगा

    कईं और भी मनसूबे किए थे जो बिखरे पड़े हैं
    ख़त्म होने चलें हैं आँसू मेरे, नैनों में सूखे पड़ें हैं

    इस बरस cake की मोमबत्ती नहीं तेरी याद में दिया जलेगा
    वक्त को अब धीरे धीरे मेरा ये ज़ख़्म भी भरना पड़ेगा
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    आज (Aaj)

    मेरे जज़्बात कुछ उलझे उलझे से हैं 
    मेरे हालात कुछ बदले बदले से हैं
    जिस कलम की नोक से अल्फ़ाज़ बहते थे
    आज उसके नीचे काग़ज़ कोरे कोरे पड़े हैं

    ज़िन्दगी और जीने के मायने अलग हो चले हैं
    पीरी के साथ ख़यालात अब कुछ सुलझ गए हैं
    जो कभी रातों का सवेरा रोज़ किया करते थे
    आज वो चंद पलों की फुर्सत से कतरा रहें हैं

    मंज़िल और पड़ाव का फ़र्क़ धुंधला रहा है
    सफ़र शायद अपने अंजाम तक आ रहा है
    ये चश्म जो कभी साथी ढूँढते थे
    आज वो साथ छूटने से घबरा रहें हैं

    अब तो इंतज़ार ही मकसद बन चुका है
    हर लम्हा अगले लम्हे के लिए बीत रहा है
    जो कभी कल की फ़िक्र को धुएँ में उड़ाते थे
    आज वो आने वाले कल को देख पा रहें हैं
  • Hindi Poetry | कविताएँ

    रोज़ाना (Rozaana)

    आसान नहीं है ऐसा हो जाना
    होता भी तो नहीं है ऐसा रोज़ाना
    मिले, बैठे, फिर अपनी राह चले
    इस से ज़्यादा कौन करता है भले

    बात ये कुछ तीस बरस पुरानी है
    चंद दोस्तों की ये अजब कहानी है
    अलग भाव, अलग स्वभाव का व्यवहार था
    आपस में यूँ घुल जाना अनूठा विचार था

    लड़कपन की सूखी लकड़ियाँ तैयार थी
    बस एक अल्लढ़ चिंगारी की दरकार थी
    एक हॉस्टल के कमरे की ये दास्ताँ है
    गहरी नींव पे खड़ा ये यारी का मकान है

    कभी बिछड़े, कही झगड़े, कभी बस पड़े पड़े
    कितने दिन ढले, रातें बीतें, कितने सूरज चढ़े
    ज़िंदगी के कदम मीलों में कब कैसे बदल गए
    बाल में सफ़ेद और वज़न सालों संग बढ़ गए

    दूरी जो थी यारी को सिमटा मिटा ना सकी
    नोक झोंक, छेड़ छाड़ की आग बुझी न रुकी
    जीवन के कई उतार-चढ़ाव दोस्तों ने देखें हैं
    साथ खड़े रहने, निभाने के क़िस्से अनोखे हैं

    हर गुट, हर कहानी में कई किरदार होतें हैं
    किसी सूरत में सेना, किसी में सरदार होते हैं
    जो ना देखे ऊँच-नीच ना देखे दुनियादारी
    कुछ ऐसी और लंबी चली है ये गाड़ी हमारी

    अब तक सँभाली है बस यूँ ही चलानी है
    बावजूद दूरी या मजबूरी पूरी निभानी है
    क्यों की आसान नहीं है ऐसा हो जाना
    और होता भी तो नहीं है ऐसा रोज़ाना